भारत छोड़ो आंदोलन – Quit India
Quit India Movement In Hindi
हमारा भारत देश कई सालों तक अंग्रेजों की गुलामी और उनके असहनीय अत्याचारों का दंश झेलता रहा। क्रूर ब्रिटिश शासकों ने तमाम भारतीयों से उनका जीने तक का अधिकार छीन लिया था।
वे सिर्फ भारतीयों को अपनी कठपुतली समझने लगे थे, जिसे देखकर भारत माता के कई वीर और क्रांतिकारी सपूतों ने देश को गुलामी की परतंत्रता से मुक्ति दिलवाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ कई आंदोलन चलाए और इन आंदोलनों के दौरान कई स्वतंत्रता सेनानियों को अपनी प्राण की बाजी तक लगानी पड़ी, लेकिन आज देश के क्रांतिकारियों द्धारा अंग्रेजों के खिलाफ किए गए इसी तरह के आंदोलनों की वजह से ही हम सभी भारतीय आजाद भारत में चैन की सांस ले पा रहे हैं।
देश को गुलामी की बेड़ियों से आजाद करवाने के लिए ऐसा ही एक बड़ा आंदोलन आजादी के महानायक माने जाने वाले महात्मा गांधी जी ने भी अंग्रेजों के खिलाफ साल 1942 में एक ऐसा ही आंदोलन चलाया और इस आंदोलन को “भारत छोड़ो आंदोलन” या ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ नाम दिया। आइए जानते हैं भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में –
भारत छोड़ो आंदोलन – Quit India Movement In Hindi
एक नजर में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के बारे में – Bharat Chhodo Andolan In Hindi
कब हुआ आंदोलन (When Quit India Movement Started) | 8 अगस्त 1942 (अगस्त क्रांति) |
कहां हुआ आंदोलन (Where Was Quit India Movement Started) | गोवालिया टैंक मैदान, बॉम्बे, भारत |
किसने किया आंदोलन का नेतृत्व (Who Started Quit India Movement) | मोहनदास करमचंद गांधी (Mahatma Gandhi) |
आंदोलन का मुख्य नारा (Quit India Movement Slogan) | ‘करो या मरो’ (Do or Die) |
आंदोलन करने का मुख्य उद्देश्य (Objectives Of Quit India Movement) | गुलाम भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलवाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ चलाया गया यह एक बड़ा आंदोलन था। |
आंदोलन का परिणाम (Conclusion Of Quit India Movement) | इस आंदोलन से देश परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त नहीं हो सका, लेकिन इस आंदोलन के बाद सभी भारतीयों के अंदर अंग्रेजों से आजादी पाने की अलख जाग गई। इस आंदोलन को भारत को आजाद करवाने में काफी महत्वपूर्ण माना गया है एवं इसे भारत की स्वतंत्रता के लिए किया जाने वाले आखिरी महानतम प्रयास भी बताया गया है। |
देश को ब्रिटिश हुकूमत के शासन से मुक्त करवाने के लिए अंग्रजों के खिलाफ चलाए गए आंदोलनों में भारत छोड़ो आंदोलन ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद साल 1942 में चलाया गया ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ एक ऐसा आंदोलन था, जिसने अंग्रेजों को भारतीयों की अदम्य शक्ति का एहसास दिलवा दिया था एवं उन्हें भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया था।
भारत छोड़ो आंदोलन के बाद कई ऐसे बदलाव हुए जिससे आजादी तो नहीं मिली, लेकिन आजादी पाने का रास्ता साफ होता चला गया एवं इसके बाद ही हर भारतीय के मन में आजादी पाने की अलख जाग गई थी, अंग्रेजों के खिलाफ और अधिक नफरत पैदा हो गई थी। गांधी जी ने ‘करो या मरो’ के नारे के साथ बिट्रिश हुकूमत के खिलाफ इस आंदोलन का आह्मवान किया था।
कब और कैसे हुई भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत – Bharat Chhodo Andolan Kab Hua
महात्मा गांधी के नेतृत्व में साल 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया था, जिसे अगस्त क्रांति (August Kranti) के नाम से भी जाना जाता है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब ब्रिटिश सैनिकों को कई जगह से परास्त मिल चुकी थी एवं ब्रिटिश सेना कमजोर पड़ने लगी थी, उस दौरान भारत पर जापानी सेना का आक्रमण करना तय लगने लगा था।
वहीं जब जापान ने प्रशांत महासागर को पार करते हुए मलाया और बर्मा पर कब्जा कर लिया एवं भारत की तरफ आगे बढ़ने लगा गया,उस दौरान ब्रिटेन पर अमेरका,चीन, रुस आदि भारत से समर्थन हासिल करने का दबाव डाल रहे थे, जिसके बाद ब्रिटेन ने भारत पर इस लड़ाई में ब्रिटिशों का साथ देने की पहल की थी।
इसके लिए ब्रिटेन ने स्टेफोर्ड क्रिप्स को भारत मार्च 1942 में भारत भेजा था। दरअसल, ब्रिटेन भारतीयों का समर्थन तो प्राप्त करना चाहती थी लेकिन भारत को पूर्ण रुप से आजादी नहीं देना चाहती थी, वह भारत की सुरक्षा को अपने ही हाथों में रखना चाहती थी, इसके साथ ही गर्वनर-जनरल वीटों के भी सभी अधिकारों को पहले की तरह ही रखना चाहती थी।
अंग्रेजों के इस प्रस्ताव से भारतीय प्रतिनिधि काफी असंतुष्ट थे और उन्होंने क्रिप्स मिशन के इन सभी प्रस्तावों को मानने से इंकार कर दिया था। भारत में क्रिप्स मिशन की विफलता का महात्मा गांधी जी ने फायदा उठाया और अंग्रेजों से भारत से चले जाने एवं भारतीयों के हाथ में सत्ता देने की मांग की।
लेकिन अंग्रेज इसके लिए तैयार नहीं हुए। इसके बाद भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार का बहिष्कार कर दिया। इसके तहत, पहले वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई जहां गांधी जी के इस प्रस्ताव से कांग्रेसी नेता दो गुटों में बंट गए। बैठक में इस पर चर्चा हुई कि अगर अंग्रेज भारत छोड़ देते हैं, तो अस्थाई सरकार बनेगी और ब्रिटिश शासन के खिलाफ ”नागरिक अवज्ञा आंदोलन” चलाया जाएगा, जिसका नेतृत्व गांधीजी द्धारा किया जाएगा।
वहीं अहिंसात्मक विचारों से प्रभावित होने की वजह से महात्मा गांधी ने इस फैसले का समर्थन नहीं किया, दरअसल महात्मा गांधी किसी भी तरह से युद्ध में शामिल नहीं होना चाहते थे, वे अहिंसात्मक तरीके से आंदोलन कर ब्रिटिश हुकूमत से आजादी पाना चाहते थे।
इसके बाद 8 अगस्त, 1942 में बॉम्बे के ”ग्वालिया टैंक” में ‘अखिल भारतीय कांग्रेस’ की बैठक आयोजित हुई। इस बैठक में यह फैसला लिया गया कि अंग्रेजों को किसी भी हाल में भारत छोड़ना ही पड़ेगा एवं भारत खुद की सुरक्षा करने में सक्षम है और फांसीवाद एवं सम्राज्यवाद के खिलाफ भारत संघर्ष करेगा, बशर्ते भारत को आजादी मिलनी चाहिए।
हालांकि, बाद में महात्मा गांधी जी के विचारों का समर्थन करते हुए कांग्रेस कार्यसमिति ने गांधी जी के ”भारत छोड़ो प्रस्ताव” को स्वीकार कर लिया। हालांकि, महात्मा गांधी जी के इस प्रस्ताव को मुस्लिम लीग, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, हिन्दू महासभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समेत कई राजनैतिक दलों ने समर्थन नहीं दिया था और बाद में इस आंदोलन की काफी आलोचना भी की थी।
तो कई राजनेताओं ने आंदोलन का सही समय नहीं बताया। वहीं इस समय भारतीय राजनैतिक दलों के नेताओं के बीच काफी मतभेद भी हुए थे।
‘करो या मरो’ का नारा बना इस आंदोलन का मूल मंत्र – Bharat Chhodo Andolan Slogan
‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव के तहत देश को गुलामी की परतंत्रता की बेड़ियों से आजाद करवाने के लिए अहिंसा पर आधारित आंदोलन की शुरुआत हुई। हालांकि, इस जन आंदोलन की शुरुआत से पहले ही गांधी जी ने देशवासियों को ‘करो या मरो’ का नारा दिया था, जिसका मतलब था कि, इस प्रयास में हर भारतवासी अपने देश को आजाद करवाने के लिए या तो इस ढंग से प्रयास करे कि गुलाम भारत को आजादी मिल जाए या फिर अपनी जान दे दे।
भारत छोड़ों आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी जी के इस नारे ने देश के नागरिकों पर काफी गहरा प्रभाव डाला था। भारत छोड़ो और ‘करो या मरो’ के नारे ने भारतीय जनता के अंदर देश की आजादी पाने की अलख जगा दी थी एवं देश के लोगों ने इस आंदोलन में बढ़चढ़ कर अपनी भूमिका निभाई थी।
भारत छोड़ो आंदोलन के तहत गिरफ्तारी – ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव में बडे स्तर पर सामूहिक संघर्ष और विरोध करने की बात कही गई थी। इसलिए ब्रिटिश सरकार ने जन-संघर्ष के शुरु होने से पहले ही 9 अगस्त, 1942 की सुबह ही भारत छोड़ो आंदोलन के नेतृत्वकर्ता महात्मा गांधी, कांग्रेस के कई बड़े नेताओं समेत श्रीमती सरोजिनी नायडू, मीराबेन, कस्तूरबा गांधी को गिरफ्तार कर अलग-अलग जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया।
इसके साथ ही इस दौरान अखिल भारतीय कांग्रेस पर भी बैन लगा दिया गया। नेताओं की गिरफ्तारी के बाद देशवासियों ने ‘करो या मरो’ का मंत्र अपनाकर जगह-जगह प्रदर्शन किए। इस दौरान पूरे देश में कई हिंसक घटनाएं हुईं। आंदोलनकारियों ने सरकारी ऑफिसों, इमारतों को जला दिया, रेलवे पटरियों को क्षति पहुंचाई गई, जगह-जगह ब्रिटिश पुलिस और देश की जनता के बीच कई हिंसात्मक प्रदर्शन हुए।
इस दौरान पूरे देश में लाठीचार्ज, गोलीबारी और बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां की गईं। इस आंदोलन में काफी हिंसा हुई। ”भारत छोड़ो आंदोलन” के दौरान करीब 60 हजार लोगों को जेल में डाल दिया, तो कई हजार लोगों की जान चली गईं। इस दौरान कस्तूरबा जी की भी मौत हो गई।
वहीं गांधी जी भी बुरी तरह बीमार पड़ गए, इसके थोड़े समय बाद गांधी जी और उनके साथियों को रिहा कर दिया गया। भारत छोड़ो आंदोलन के असफल होने की मुख्य वजह महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में चला गया यह व्यापक आंदोलन एक साथ पूरे भारत में शुरु नहीं किया गया।
अलग-अलग तारीखों में इस आंदोलन की शुरुआत होने पर इसका प्रभाव कम होता चला गया, हालांकि इस आंदोलन में बड़े स्तर पर देश के नागरिकों ने अपनी भागीदारी निभाई थी एवं उनके मन में अंग्रेजों से आजादी पाने की अलख जाग गई थी। ‘भारत छोड़ों आंदोलन’ ने बाद में बेहद हिंसक रुप ले लिया था एवं कई भारतीय यह सोचने लगे थे कि इस आंदोलन के तुरंत बाद ही वे ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी से आजाद हो जाएंगे।
इस आंदोलन के सफल नहीं होने की यह भी एक मुख्य वजह मानी जाती है। फिलहाल, महात्मा गांधी जी का ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ सफल जरूर नहीं हुआ था, लेकिन इस आंदोलन ने ब्रिटिश हुकूमत को भारतीयों की शक्ति का एहसास दिलवा दिया था।
इसके साथ ही यह सोचने पर मजबूर कर दिया था कि अगर सभी भारतीय एकजुट हो गए तो वे भारत में ज्यादा दिन तक अपना शासन नहीं कर सकेंगे और उन्हें भारत छोड़कर जाना पड़ेगा। इसलिए इस आंदोलन को स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम महानतम प्रयासों में से एक बताया गया है।
इस तरह महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए ”भारत छोड़ो आंदोलन’ ने गुलाम भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद करवाने में अपनी महत्पूर्ण भूमिका निभाई है और हर भारतीय पर एक अलग छाप छोड़ी है।
और भी :
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (1857-1947)
भारत छोड़ो आंदोलन
अगस्त 1942 में गांधी जी ने ''भारत छोड़ो आंदोलन'' की शुरूआत की तथा भारत छोड़ कर जाने के लिए अंग्रेजों को मजबूर करने के लिए एक सामूहिक नागरिक अवज्ञा आंदोलन ''करो या मरो'' आरंभ करने का निर्णय लिया। इस आंदोलन के बाद रेलवे स्टेशनों, दूरभाष कार्यालयों, सरकारी भवनों और अन्य स्थानों तथा उप निवेश राज के संस्थानों पर बड़े स्तर पर हिंसा शुरू हो गई। इसमें तोड़ फोड़ की ढेर सारी घटनाएं हुईं और सरकार ने हिंसा की इन गतिविधियों के लिए गांधी जी को उत्तरदायी ठहराया और कहा कि यह कांग्रेस की नीति का एक जानबूझ कर किया गया कृत्य है। जबकि सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, कांग्रेस पर प्रतिबंद लगा दिया गया और आंदोलन को दबाने के लिए सेना को बुला लिया गया।
इस बीच नेता जी सुभाष चंद्र बोस, जो अब भी भूमिगत थे, कलकत्ता में ब्रिटिश नजरबंदी से निकल कर विदेश पहुंच गए और ब्रिटिश राज को भारत से उखाड़ फेंकने के लिए उन्होंने वहां इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) या आजाद हिंद फौज का गठन किया।
द्वितीय विश्व युद्ध सितम्बर 1939 में शुरू हुआ और भारतीय नेताओं से परामर्श किए बिना भारत की ओर से ब्रिटिश राज के गर्वनर जनरल ने युद्ध की घोषणा कर दी। सुभाष चंद्र बोस ने जापान की सहायता से ब्रिटिश सेनाओं के साथ संघर्ष किया और अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों को ब्रिटिश राज के कब्जे से मुक्त करा लिया तथा वे भारत की पूर्वोत्तर सीमा पर भी प्रवेश कर गए। किन्तु 1945 में जापान ने पराजय पाने के बाद नेता जी एक सुरक्षित स्थान पर आने के लिए हवाई जहाज से चले परन्तु एक दुर्घटनावश उनके हवाई जहाज के साथ एक हादसा हुआ और उनकी मृत्यु हो गई।
"''तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी दूंगा''" - उनके द्वारा दिया गया सर्वाधिक लोकप्रिय नारा था, जिसमें उन्होंने भारत के लोगों को आजादी के इस संघर्ष में भाग लेने का आमंत्रण दिया।
भारत और पाकिस्तान का बंटवारा
द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने पर ब्रिटिश प्रधान मंत्री क्लेमेंट रिचर्ड एटली के नेतृत्व में लेबर पार्टी शासन में आई। लेबर पार्टी आजादी के लिए भारतीय नागरिकों के प्रति सहानुभूति की भावना रखती थी। मार्च 1946 में एक केबिनैट कमीशन भारत भेजा गया, जिसके बाद भारतीय राजनैतिक परिदृश्य का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया गया, एक अंतरिम सरकार के निर्माण का प्रस्ताव दिया गया और एक प्रांतीय विधान द्वारा निर्वाचित सदस्यों और भारतीय राज्यों के मनोनीत व्यक्तियों को लेकर संघटक सभा का गठन किया गया। जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व ने एक अंतरिम सरकार का निर्माण किया गया। जबकि मुस्लिम लीग ने संघटक सभा के विचार विमर्श में शामिल होने से मना कर दिया और पाकिस्तान के लिए एक अलग राज्य बनाने में दबाव डाला। लॉर्ड माउंटबेटन, भारत के वाइसराय ने भारत और पाकिस्तान के रूप में भारत के विभाजन की एक योजना प्रस्तुत की और तब भारतीय नेताओं के सामने इस विभाजन को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि मुस्लिम लीग अपनी बात पर अड़ी हुई थी।
इस प्रकार 14 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को भारत आजाद हुआ (तब से हर वर्ष भारत में 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है)। जवाहर लाल नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और 1964 तक उनका कार्यकाल जारी रहा। राष्ट्र की भावनाओं को स्वर देते हुए प्रधानमंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा,
कई वर्ष पहले हमने नियति के साथ निश्चित किया और अब वह समय आ गया है जब हम अपनी शपथ दोबारा लेंगे, समग्रता से नहीं या पूर्ण रूप से नहीं बल्कि अत्यंत भरपूर रूप से। मध्य रात्रि के घंटे की चोट पर जब दुनिया सो रही होगी हिन्दुस्तान जीवन और आजादी के लिए जाग उठेगा। एक ऐसा क्षण जो इतिहास में दुर्लभ ही आता है, जब हम अपने पुराने कवच से नए जगत में कदम रखेंगे, जब एक युग की समाप्ति होगी और जब राष्ट्र की आत्मा लंबे समय तक दमित रहने के बाद अपनी आवाज पा सकेगा। हम आज दुर्भाग्य का एक युग समाप्त कर रहे हैं और भारत अपनी दोबारा खोज आरंभ कर रहा है।
पहले, संघटक सभा का गठन भारतीय संविधान को रूपरेखा देना के लिए जुलाई 1946 में किया गया था और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को इसका राष्ट्रपति निर्वाचित किया गया था। भारतीय संविधान, जिसे 26 नवम्बर 1949 को संघटक सभा द्वारा अपनाया गया था। 26 जनवरी 1950 को यह संविधान प्रभावी हुआ और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भारत का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया।
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